शिक्षा का बाजारीकरण
आज समूचे देश भर में शिक्षा का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है इसी तेजी के साथ शिक्षा विभाग में बेईमानीं भी घुस रही है। पहले शिक्षा देने वाले अपने धंधे में बेईमानियां करते थे स्कूलों, कॉलेजों में अनुदान भी करते थे परंतु आज इसका उल्टा हो रहा है शिक्षा चाहे सरकारी हो या प्राइवेट दोनों में घूसखोरी चरम पर है।
व्यापम घोटाला भी इसी की देन है। मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले में लगभग ६०० से अधिक मेडिकल छात्रों के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट ने दाखिला रदद् कर दिया है । २००८ से २०१२ के बीच गैरकानूनी तरीके से प्रवेश पाये इन डॉक्टरों का कैरियर अब बर्बाद हो चुका है। इन छात्रों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने की जरूरत नही है क्योंकि देश मे इस तरह के गैरकानूनी काम धड़ल्ले से हो रहे है जो छात्रों के भविष्य को गलत राह पर ले जा रहें हैं। और उन्हें सीखा रहे है कि शिक्षा में हर तरह का हेरफेर संभव है। शिक्षा पैसे और नकल का खेल है, प्रतिभा का मूल्यांकन नहीं। अगर इन्हीं छात्रों की तरह कुछ हजार-लाख छात्र-छात्राओं के कैरियर की सिस्टम को सुधारने के लिए कुरबानी देने पड़े तो गलत नहीं होगा। व्यापम घोटाले के मामले में अदालत ने यह पाया था कि सभी छात्रों ने परीक्षा में OMR शीटों मे एक जैसी गलती की थी यानी पूरी तरह कॉपी-पेस्ट। ऐसे छात्र मेडिकल की डिग्री के कतई हकदार नही है क्योंकि वे ऐसी गलती दोबारा दोहरा सकते है।
गौरतलब है कि इन तमाम खामियों के बावजूद देश मे प्रतिभा की कमी नही है जो कि देश मे ही नहीं देश के बाहर भी नाम कमा रहीं है। शायद जहरीले साँपो के बीच चन्दन के शीतल वृक्ष भी है। सोचने वाली बात यह है कि शिक्षा मे कालाबजारी करने वालों को पकड़ने के लिये मनगढंत ड्रामेबाजी तो होती रही है पर शिक्षा प्रणाली बदलने की कोई मंशा नही दिख रही है।
शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों को ऐसे बड़े-बड़े सपने(जिम, स्विमिंग पूल, स्पोर्ट सेंटर आदि)दिखाए जाते है जैसे प्रोपेर्टी, प्लाट और फ्लैट बेचते समय बिल्डर दिखातें है। निजी विद्यालयों के प्रबंधक शिक्षा के माध्यम से नई पीढ़ी तैयार नही कर रहे है बल्कि शिक्षा को मोहरा बनाकर अपनी जेबें भर रहे हैं। आज देश मे शिक्षा के नाम पर एक बड़ा कला धंधा हो रहा है। आज के अभिभावक जानते है कि शिक्षा में ही उनके बच्चों का भविष्य निहित है। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए अभिभावक अपना पेट काटकर उनकी फीस भरते है और शिक्षा के दुकानदार उनकी मजबूरी समझ कर लूटने मे लगे है। सरकारी संस्थानों में नकल, गैरहाजिरी और ट्यूशन की भरमार है तो निजी संस्थानों में फीस के रूप में डोनेशन का बोलबाला है।
धन्यभाग है कि देश की आबादी इतनी ज्यादा है कि अपेक्षित संख्या में प्रतिभावान छात्र निकल ही जाते है। तभी तो ९० से अधिक प्रतिशत वालों को भी प्रवेश नही मिल पाता पर संभावना इसकी भी है कि वे ९० व ९५ प्रतिशत वाले बेईमानी शिक्षा के उत्पाद हो खैर इतना जरूर है कि हमारे युवाओं ने इन विपरित परिस्थितियों में भी बहुत नाम कमाया है। अमेरिका की सिलिकॉन वैली भारतीय प्रतिभा से पटी पड़ी है और अमेरिका मे डोनाल्ड ट्रम्प के निशाने पर मुस्लिम आतंकवाद से ज्यादा भारतीय मेधावी छात्र है। यदि हमारे शिक्षा प्रबंधक जरा सा देशभक्ति का अमलीजामा पहन लें तो आने वाली पीढ़ी ऐसी तैयार होगी कि पूरे विश्व मे भारत का ही डंका बजेगा।
~ मनोज पाल 'विकल्प'
व्यापम घोटाला भी इसी की देन है। मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले में लगभग ६०० से अधिक मेडिकल छात्रों के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट ने दाखिला रदद् कर दिया है । २००८ से २०१२ के बीच गैरकानूनी तरीके से प्रवेश पाये इन डॉक्टरों का कैरियर अब बर्बाद हो चुका है। इन छात्रों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने की जरूरत नही है क्योंकि देश मे इस तरह के गैरकानूनी काम धड़ल्ले से हो रहे है जो छात्रों के भविष्य को गलत राह पर ले जा रहें हैं। और उन्हें सीखा रहे है कि शिक्षा में हर तरह का हेरफेर संभव है। शिक्षा पैसे और नकल का खेल है, प्रतिभा का मूल्यांकन नहीं। अगर इन्हीं छात्रों की तरह कुछ हजार-लाख छात्र-छात्राओं के कैरियर की सिस्टम को सुधारने के लिए कुरबानी देने पड़े तो गलत नहीं होगा। व्यापम घोटाले के मामले में अदालत ने यह पाया था कि सभी छात्रों ने परीक्षा में OMR शीटों मे एक जैसी गलती की थी यानी पूरी तरह कॉपी-पेस्ट। ऐसे छात्र मेडिकल की डिग्री के कतई हकदार नही है क्योंकि वे ऐसी गलती दोबारा दोहरा सकते है।
गौरतलब है कि इन तमाम खामियों के बावजूद देश मे प्रतिभा की कमी नही है जो कि देश मे ही नहीं देश के बाहर भी नाम कमा रहीं है। शायद जहरीले साँपो के बीच चन्दन के शीतल वृक्ष भी है। सोचने वाली बात यह है कि शिक्षा मे कालाबजारी करने वालों को पकड़ने के लिये मनगढंत ड्रामेबाजी तो होती रही है पर शिक्षा प्रणाली बदलने की कोई मंशा नही दिख रही है।
शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों को ऐसे बड़े-बड़े सपने(जिम, स्विमिंग पूल, स्पोर्ट सेंटर आदि)दिखाए जाते है जैसे प्रोपेर्टी, प्लाट और फ्लैट बेचते समय बिल्डर दिखातें है। निजी विद्यालयों के प्रबंधक शिक्षा के माध्यम से नई पीढ़ी तैयार नही कर रहे है बल्कि शिक्षा को मोहरा बनाकर अपनी जेबें भर रहे हैं। आज देश मे शिक्षा के नाम पर एक बड़ा कला धंधा हो रहा है। आज के अभिभावक जानते है कि शिक्षा में ही उनके बच्चों का भविष्य निहित है। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए अभिभावक अपना पेट काटकर उनकी फीस भरते है और शिक्षा के दुकानदार उनकी मजबूरी समझ कर लूटने मे लगे है। सरकारी संस्थानों में नकल, गैरहाजिरी और ट्यूशन की भरमार है तो निजी संस्थानों में फीस के रूप में डोनेशन का बोलबाला है।
धन्यभाग है कि देश की आबादी इतनी ज्यादा है कि अपेक्षित संख्या में प्रतिभावान छात्र निकल ही जाते है। तभी तो ९० से अधिक प्रतिशत वालों को भी प्रवेश नही मिल पाता पर संभावना इसकी भी है कि वे ९० व ९५ प्रतिशत वाले बेईमानी शिक्षा के उत्पाद हो खैर इतना जरूर है कि हमारे युवाओं ने इन विपरित परिस्थितियों में भी बहुत नाम कमाया है। अमेरिका की सिलिकॉन वैली भारतीय प्रतिभा से पटी पड़ी है और अमेरिका मे डोनाल्ड ट्रम्प के निशाने पर मुस्लिम आतंकवाद से ज्यादा भारतीय मेधावी छात्र है। यदि हमारे शिक्षा प्रबंधक जरा सा देशभक्ति का अमलीजामा पहन लें तो आने वाली पीढ़ी ऐसी तैयार होगी कि पूरे विश्व मे भारत का ही डंका बजेगा।
~ मनोज पाल 'विकल्प'
Achi line hai sir kash k log samz sake
ReplyDeleteGood thought
ReplyDeleteYe to real hai bt apni gov kas in chijo ko samjh pati
ReplyDeleteYe to real hai bt apni gov kas in chijo ko samjh pati
ReplyDeleteजी बिलकुल सत्य 👌👌
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